ग़ज़ल का हुस्न और गीत का शबाब है वो
नशा है जिसमे सुखन का वही शराब है वो
उसे न देख एक महकता हुआ गुलाब है वो
तन्हा ही कितनी निगाहों का इंतेखाब है वो
मिसाल मिल न सकी कायनात में उसकी
जवाब उसका नहीं है कोई लाज़वाब है वो
मेरी इन आँखों को ताबीर मिल नहीं पाती
जिसे मैं देखता रहता हूँ ऐसा एक ख़्वाब है वो
न जाने कितने हिज़ाबो में छुपा है वो मगर
निगाह ए दिल से जो देखूँ तो बेहिज़ाब है वो
वो आया है पूछने मुझसे हाल मेरा मगर मैं
कैसे बताऊँ कि सुकुन ए दिल में इज़्तिराब है वो..!!