कोई नहीं आता समझाने
अब आराम से हैं दीवाने,
तय न हुए दिल के वीराने
थक कर बैठ गए दीवाने,
मजबूरी सब को होती है
मिलना हो तो लाख बहाने,
बन न सकी अहबाब से अपनी
वो दाना थे हम दीवाने,
नई नई उम्मीदें आ कर
छेड़ रही हैं ज़ख़्म पुराने,
जल्वा ए जानाँ की तफ़्सीरें
एक हक़ीक़त लाख फ़साने,
दुनिया भर का दर्द सहा है
हम ने तेरे ग़म के बहाने,
फिर वहशत आई सुलझाने
होश ओ ख़िरद के ताने बाने,
फिर अपने आँचल से हवा दी
शो’ला ए गुल को बाद ए सबा ने,
फिर वो डाल गए दामन में
दर्द की दौलत ग़म के ख़ज़ाने,
आज फिर आँखों में फिरते हैं
अहद ए तमन्ना के वीराने,
फिर तन्हाई पूछ रही है
कौन आए दिल को बहलाने,
‘सैफ़’ वो ग़म भी तिश्ना ए ख़ूँ है
हम ज़िंदा हैं जिस के बहाने..!!
~सैफ़ुद्दीन सैफ़