किसी झूठीं वफ़ा से दिल को बहलाना नहीं आता
मुझे घर काग़ज़ी फूलों से महकाना नहीं आता,
मैं जो कुछ हूँ वही कुछ हूँ जो ज़ाहिर है वो बातिन है
मुझे झूठे दर ओ दीवार चमकाना नहीं आता,
मैं दरिया हूँ मगर बहता हूँ मैं कोहसार की जानिब
मुझे दुनिया की पस्ती में उतर जाना नहीं आता,
ज़र ओ माल ओ जवाहर ले भी और ठुकरा भी सकता हूँ
कोई दिल पेश करता हो तो ठुकराना नहीं आता,
परिंदा जानिब ए दाना हमेशा उड़ के आता है
परिंदे की तरफ़ उड़ कर कभी दाना नहीं आता,
अगर सहरा में हैं तो आप ख़ुद आए हैं सहरा में
किसी के घर तो चल कर कोई वीराना नहीं आता,
हुआ है जो सदा उस को नसीबों का लिखा समझा
अदीम अपने किए पर मुझ को पछताना नहीं आता…!!
~अदीम हाशमी