ख़याल ओ ख़्वाब में होना सदा ए बाद में रहना

ख़याल ओ ख़्वाब में होना सदा ए बाद में रहना
किसी की आस में जीना किसी की याद में रहना,

पुर असरारी अजब सी है तेरी वीरान आँखों में
तुझे भी रास आया ख़ाना ए बर्बाद में रहना,

मोहब्बत एक बहर ए बे कराँ है और मोहब्बत में
कहीं पर क़ैद होना है दिल ए आज़ाद में रहना,

किसी की याद है उलझी हुई साँसों की डोरी से
किसी के हिज्र में है अर्सा ए फ़रियाद में रहना,

तो फिर हिज्र ओ विसाल ओ रंज ओ ग़म सारे इज़ाफ़ी हैं
जो हासिल है वफ़ा को इश्क़ की बुनियाद में रहना,

जफ़ा की एक सी रस्में ही इंसाँ का मुक़द्दर हैं
किसी कूफ़ा में जीना हो या कि बग़दाद में रहना,

किसी से क्या शिकायत ज़िंदगी को रास आया है
जफ़ा के शहर में दश्त ए सितम ईजाद में रहना..!!

~नून मीम दनिश

उजाड़ आँखों में रत जगों का अज़ाब उतरा है नीम शब को

1 thought on “ख़याल ओ ख़्वाब में होना सदा ए बाद में रहना”

Leave a Reply