खेल दोनों का चले तीन का दाना न पड़े
सीढ़ियाँ आती रहें साँप का ख़ाना न पड़े,
देख मेमार परिंदे भी रहें घर भी बने
नक़्शा ऐसा हो कोई पेड़ गिराना न पड़े,
मेरे होंठों पे किसी लम्स की ख़्वाहिश है शदीद
ऐसा कुछ कर मुझे सिगरेट को जलाना न पड़े,
इस तअल्लुक़ से निकलने का कोई रास्ता दे
इस पहाड़ी पे भी बारूद लगाना न पड़े,
नम की तर्सील से आँखों की हरारत कम हो
सर्दख़ानों में कोई ख़्वाब पुराना न पड़े,
रब्त की ख़ैर है बस तेरी अना बच जाए
इस तरह जा कि तुझे लौट के आना न पड़े.
हिज्र ऐसा हो कि चेहरे पे नज़र आ जाए
ज़ख़्म ऐसा हो कि दिख जाए दिखाना न पड़े..!!
~उमैर नजमी