जो गुल है याँ सो उस गुल-ए-रुख़्सार साथ है

जो गुल है याँ सो उस गुल-ए-रुख़्सार साथ है
क्या गुल है वो कि जिस के ये गुलज़ार साथ है,

तो मस्त शब अँधेरी और अग़्यार साथ है
जो दिल में आवे कह ये गुनहगार साथ है,

ख़ामोश अंदलीब-ए-चमन तुझ से किया है बहस
अपना सुख़न तो मुर्ग़-ए-गिरफ़्तार साथ है,

पैग़ाम उस निगह का कि जिस में है बू-ए-मेहर
क्या जाने किस के आख़िरी दीदार साथ है,

उक़्दा न ये खुला कि मिरे दिल सा पहलवान
तुझ ज़ुल्फ़ के बंधा हुआ इक तार साथ है,

करते तो हो मिरे मरज़-ए-दिल का तुम इलाज
यारो जो दिल यही है तो आज़ार साथ है,

‘सौदा’ के हाथ क्यूँ-के लगे वो मता-ए-हुस्न
ले निकलें जिस को घर से तो बाज़ार साथ है..!!

~मोहम्मद रफ़ी सौदा

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