जब लहजे बदल जाएँ तो वज़ाहतें कैसी ?
नई मयस्सर हो जाएँ तो पुरानी चाहतें कैसी ?
वस्ल में गुज़रे लम्हे हैं अनमोल यादें
हिज़्र में सुख, खुशियाँ, राहतें कैसी ?
लोग बदल जाते हैं दिल भर जाने पे भी
ला हासिल तलाश, चेहरों में शबाहतें कैसी ?
हर फ़र्द ही बना है ख़ुद साख्ता पारसा यहाँ
दुनियाँ दिखावे के लिए हों तो इबादतें कैसी ??