इश्क़ मैंने लिख डाला क़ौमीयत के ख़ाने में

इश्क़ मैंने लिख डाला क़ौमीयत के ख़ाने में
और तेरा दिल लिखा शहरियत के ख़ाने में,

मुझको तजरबों ने ही बाप बन के पाला है
सोचता हूँ क्या लिखूँ वलदियत के ख़ाने में,

मेरा साथ देती है मेरे साथ रहती है
मैंने लिखा तन्हाई ज़ौजिय्यत के ख़ाने में,

दोस्तों से जा कर जब मशवरा किया तो फिर
मैंने कुछ नहीं लिखा हैसियत के ख़ाने में,

इम्तिहाँ मोहब्बत का पास कर लिया मैंने
अब यही मैं लिखूँगा अहलियत के ख़ाने में,

जब से आप मेरे हैं फ़ख़्र से मैं लिखता हूँ
नाम आप का अपनी मिलकियत के ख़ाने में..!!

~आमिर अमीर

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