इस तरह गुम हूँ ख़यालों में कुछ एहसास नहीं
कौन है पास मेरे कौन मेरे पास नहीं,
दर्द जब हद में रहे दर्द का भी लुत्फ़ मिले
ये भी क्या ग़म है कि जिस ग़म का कुछ एहसास नहीं,
इस तरह शौक़ ए मोहब्बत में न गुम हो कोई
मुझ को उल्फ़त भी किसी से है ये एहसास नहीं,
ये हैं उल्फ़त के करिश्मे कि इलाही तौबा
यूँ मेरे पास हैं वो जैसे मेरे पास नहीं,
काँटों को रौंदता मैं बढ़ता चला जाता हूँ
शौक़ ए दीदार में मंज़िल का भी एहसास नहीं,
सुब्ह का तारा भी मादूम हुआ जाता है
शौक़ अब उस के करम की हमें कुछ आस नहीं..!!
~विशनू कुमार शौक