राह से हिज़्र की दीवार हटाने के लिए
हाथ भी जोड़े उसको मनाने के लिए,
अपनी खातिर तो कभी जी के नहीं देख सके
उम्र सब हमने बसर की है ज़माने के लिए,
मौसम ए हिज़्र करे रोज़ ही रोने की तलब
आँख में अश्क नहीं अब कि बहाने के लिए,
कीमती चीज मुहब्बत थी सो बर्बाद हुई
पास अब कुछ भी नहीं यार बचाने के लिए,
इस कदर घेर के रखा है उदासियो ने मुझे
सिर्फ़ हँसता हूँ मैं अब तस्वीर खिचाने के लिए,
घर के हर फ़र्द की ख्वाहिश का लिए बोझ लिए
हमको आना ही पड़ा परदेश कमाने के लिए..!!
बहुत उम्दा लिखा है.. लाजबाब.. 👌🏻👌🏻