हम ने जिस के लिए फूलों के जहाँ छोड़े हैं
उस ने इस दिल में फ़क़त ज़ख़्म ए निहाँ छोड़े हैं,
हम ने ख़ुद अपने उसूलों की हिफ़ाज़त के लिए
दौलतें छोड़ दीं शोहरत की जहाँ छोड़े हैं,
ज़िंदगी हम ने तेरा साथ निभाने के लिए
तपते सहरा में भी क़दमों के निशाँ छोड़े हैं,
हम किसी और के हो जाएँ किसी को चाहें
ऐसे अस्बाब मगर उस ने कहाँ छोड़े हैं ?
जिस की परछाई लिए फिरती हैं आँखें मेरी
उस ने पलकों पे मेरी आब ए रवाँ छोड़े हैं..!!
~मीना ख़ान