होती है तेरे नाम से वहशत कभी कभी

होती है तेरे नाम से वहशत कभी कभी
बरहम हुई है यूँ भी तबीअत कभी कभी,

ऐ दिल किसे नसीब ये तौफ़ीक़ ए इज़्तिराब
मिलती है ज़िंदगी में ये राहत कभी कभी,

तेरे करम से ऐ अलम ए हुस्न आफ़रीं
दिल बन गया है दोस्त की ख़ल्वत कभी कभी,

जोश ए जुनूँ में दर्द की तुग़्यानियों के साथ
अश्कों में ढल गई तेरी सूरत कभी कभी,

तेरे क़रीब रह के भी दिल मुतमइन न था
गुज़री है मुझ पे ये भी क़यामत कभी कभी,

कुछ अपना होश था न तुम्हारा ख़याल था
यूँ भी गुज़र गई शब ए फ़ुर्क़त कभी कभी,

ऐ दोस्त हम ने तर्क ए मोहब्बत के बावजूद
महसूस की है तेरी ज़रूरत कभी कभी..!!

~नासिर काज़मी

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