होंठों को फूल आँख को बादा नहीं कहा
तुझको तेरी अदा से ज़ियादा नहीं कहा,
बरता गया हूँ सिर्फ़ किसी सैर की तरह
तूने मुझे सफ़र का इरादा नहीं कहा,
कहता तो हूँ तुझे मैं गुल ए ख़ुशनुमा मगर
ख़ुश रंग मौसमों का लबादा नहीं कहा,
रहते हैं सिर्फ़ तंग नज़र लोग जिस जगह
उस शहर ए बे कराँ को कुशादा नहीं कहा,
बाँधा हर एक ख़याल बड़ी सादगी के साथ
लेकिन कोई ख़याल भी सादा नहीं कहा,
मीरी बिसात पर तो सभी बादशाह हैं
मैंने कभी किसी को पियादा नहीं कहा,
वो आसमाँ मिज़ाज मुसाफ़िर हूँ आज तक
मैंने तेरी ज़मीन को जादा नहीं कहा..!!
~आसिम वास्ती