हर सम्त परेशाँ तिरी आमद के क़रीने

हर सम्त परेशाँ तिरी आमद के क़रीने
धोके दिए क्या क्या हमें बाद ए सहरी ने,

हर मंजिल ए ग़ुरबत पे गुमाँ होता है घर का
बहलाया है हर गाम बहुत दर ब दरी ने,

थे बज़्म में सब दूद ए सर ए बज़्म से शादाँ
बेकार जलाया हमें रौशन नज़री ने,

मयख़ाने में आजिज़ हुए आज़ुर्दा दिली से
मस्जिद का न रखा हमें आशुफ़्ता सरी ने,

ये जामा ए सद चाक बदल लेने में क्या था
मोहलत ही न दी फ़ैज़ कभी बख़ियागरी ने..!!

~फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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