हर मुलाक़ात में लगते हैं वो बेगाने से
फ़ाएदा क्या है भला ऐसों के याराने से,
कुछ जो समझा तो मुझे सब ने ही आशिक़ समझा
बात ये ख़ूब निकाली मेरे अफ़्साने से,
ज़िंदगी अपनी नज़र आने लगी सिर्फ़ सराब
कभी गुज़रे जो दिल ए ज़ार के वीराने से,
एक पल भी न ठहर पाओगे ऐ संगज़नो
कोई पत्थर कभी लौट आया जो दीवाने से,
तुम को मरना है तो मरना मेरे गुल होने पर
शम्अ’ कहती रही शबभर यही परवाने से,
फिर न देखा तुझे ऐ ‘जोश’ सुकूँ से बैठा
जब से उठा है तू इस शोख़ के काशाने से..!!
~ए जी जोश