हमने उसकी आँखे पढ़ ली…

हमने उसकी आँखे पढ़ ली
छुपा कोई चेहरा है शायद !

वो हर बात पे हँस देती है
ज़ख्म बहुत गहरा है शायद !

गुमसुम यादें घायल माज़ी
सालो से है सखियाँ उसकी,

कच्ची नींद उचट जाती है
ख़्वाबो पे पहरा है शायद !

शहर जला क्यूँ घर बिखरा ?
पगली आकाश से पूछ रही है,

कौन उसे जा कर ये समझाए
ये आसमान बहरा है शायद !

सारी उलझन, सब बेचैनी
और जो धुँधला धुँधला गम है,

आँसू बन कर बह जाने दो
ये पलकों पे ठहरा है शायद..!!

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