जानता कोई नहीं आज असूलो की ज़ुबान…

जानता कोई नहीं आज असूलो की ज़ुबान
काश ! आ जाए हमें बोलना फूलों की ज़ुबान,

मौसम ए गुल है खिले आपकी ख़ुशबू के गुलाब
बोलना आ के ज़रा फिर से वो झूलों की ज़ुबान,

ये रवैया भी हमें शहर के लोगो से मिला
फूल के मुँह में रखी आज बबूलों की ज़ुबान,

आप ने समझा हमें गम का तदारुक भी किया
जानता कौन भला हमसे फ़जूलों की ज़ुबान,

बे वज़ह गर्क़ कोई एक भी उम्मत न हुई
डालते पुश्त पे जब लोग रसूलो की ज़ुबान,

आज हसरत से हर एक दौर निकल भागे है
क्या हुआ ? बोलता है क्या ये बगुलों की ज़ुबान..!!

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