हाथ उठे जो दुआ को, तो दिल ऐसे रखा
ख्वाहिशे बाद में रखी तुझे पहले रखा,
वक़्त ने आजिज़ी इस दर्जा सिखाई थी हमें
अपनी औकात को औकात से नीचे रखा,
ज़िन्दगी ख़्वाब के दरबार से बाहर निकली
हमने हर तल्ख़ हकीक़त को जब आगे रखा,
आख़िरी वक़्त उतारी गई थी बंद घड़ी
उसने ता उम्र मेरी याद को पहने रखा,
खत के एक कोने में कुछ दिल थे, मगर हाय दिल
उसने हर एक में था तीर पिरो के रखा,
ये अगर इश्क़ है जो तुझको मेरी रूह से है
क्या था वो रिश्ता जो उस शख्स ने मुझसे रखा ?
हमने जब मज़हब ओ दुनियाँ को जुदा कर के पढ़ा
इस नयी जंग ने हमको बड़ी पीछे रखा..!!