गुलशन की फ़ज़ा धुआँ धुआँ है

गुलशन की फ़ज़ा धुआँ धुआँ है
कहते हैं बहार का समाँ है,

बिखरी हुई पत्तियाँ हैं गुल की
टूटी हुई शाख़ ए आशियाँ है,

जिस दिल से उभर रहे थे नग़्मे
पहलू में वो आज नौहा ख़्वाँ है,

हम ही नहीं पाएमाल तन्हा
ऐ दोस्त तबाह एक जहाँ है,

जालिब वो कहाँ है इश्क़ तेरा
प्यारे वो ग़ज़ल तेरी कहाँ है..??

~हबीब जालिब

जहाँ हैं महबूस अब भी हम वो हरम सराएँ नहीं रहेंगी

1 thought on “गुलशन की फ़ज़ा धुआँ धुआँ है”

Leave a Reply