गली गली यूँ मोहब्बत के ख़्वाब बेचूँगा

गली गली यूँ मोहब्बत के ख़्वाब बेचूँगा
मैं रख के रेढ़ी पे ताज़ा गुलाब बेचूँगा,

रही जो ज़िन्दगी मेरी तो शहर ए ज़ुल्मत में
चिराग़ बेचूँगा और बे हिसाब बेचूँगा,

मेरा उजालों का व्योपार बस चमक जाए
फ़लक पे बैठ के मैं आफ़ताब बेचूँगा,

कशिद कर के क़लन्दर की मस्त आँखों से
शराबियों को मैं हक़ की शराब बेचूँगा,

खरीद कर मैं जहन्नुम से जिस्म लैला का
जनाब कैश को दिलकश अज़ाब बेचूँगा,

सुनाई देगा जिसे मेरी रूह का नग्मा
मैं ऐसे शख्स को दिल का रबाब बेचूँगा,

लगा के आग मैं रख दूँगा फिक्र ए नफ़रत को
कबाड़ियों को मैं उसका निसाब बेचूँगा..!!

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