फिर कभी लौट कर न आएँगे

फिर कभी लौट कर न आएँगे
हम तेरा शहर छोड़ जाएँगे,

दूर उफ़्तादा बस्तियों में कहीं
तेरी यादों से लौ लगाएँगे,

शम ए माह ओ नुजूम गुल कर के
आँसुओं के दिए जलाएँगे,

आख़िरी बार एक ग़ज़ल सुन लो
आख़िरी बार हम सुनाएँगे,

सूरत ए मौजा ए हवा जालिब
सारी दुनिया की ख़ाक उड़ाएँगे..!!

~हबीब जालिब

अब तेरी ज़रूरत भी बहुत कम है मेरी जाँ

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