एक पल में ज़िंदगी भर की उदासी दे गया
वो जुदा होते हुए कुछ फूल बासी दे गया,
नोच कर शाख़ों के तन से ख़ुश्क पत्तों का लिबास
ज़र्द मौसम बाँझ रुत को बे लिबासी दे गया,
सुब्ह के तारे मेरी पहली दुआ तेरे लिए
तू दिल ए बे सब्र को तस्कीं ज़रा सी दे गया,
लोग मलबों में दबे साए भी दफ़नाने लगे
ज़लज़ला अहल ए ज़मीं को बद हवासी दे गया,
तुंद झोंके की रगों में घोल कर अपना धुआँ
एक दिया अंधी हवा को ख़ुद शनासी दे गया,
ले गया मोहसिन वो मुझ से अब्र बनता आसमाँ
उस के बदले में ज़मीं सदियों की प्यासी दे गया..!!
~मोहसिन नक़वी























