एक निहत्थे आदमी के हाथ में क़िस्मत ही काफी है
हवाओं का रुख बदलने के लिए चाहत ही काफी है,
ज़रूरत ही नहीं अहसासों को अल्फाज़ की कोई
समंदर की तरह अहसासों में शिद्दत ही काफी है,
मुबारक़ हो तुम्हे शहर वालो जीने के अंदाज़ शहरों में
हमें तो हमारे गाँवों में मरने की बस राहत ही काफी है,
नफ़रत को हथियार बना कर इंसानियत मिटाने वालो
तुम जैसो से निपटने के लिए एक क़ुदरत ही काफी है,
मुफ़लिस की क़िस्मत में पक्की दीवार नहीं तो क्या ?
उसके लिए छप्पर, झोपड़े,खपरैल की छत ही काफी है..!!