दुनिया से जिस से आगे का सोचा नहीं गया
हम से वहाँ पहुँच के भी ठहरा नहीं गया,
आँखों पे ऐसा वक़्त भी गुज़रा है बारहा
वो देखना पड़ा है जो देखा नहीं गया,
पढ़वाना चाहते थे नुजूमी से हम वही
हम से क़दम ज़मीन पे रखा नहीं गया,
नक़्शे में आज ढूँढने बैठा हूँ वो ज़मीं
जिस को हज़ार टुकड़ों में बाँटा नहीं गया,
अब क्या कहें नुजूमी के बारे में छोड़िए
अपना तो ये बरस भी कुछ अच्छा नहीं गया..!!
~राजेश रेड्डी
























