दोस्तो! अब और क्या तौहीन होगी रीश की

दोस्तो! अब और क्या तौहीन होगी रीश की
ब्रेसरी के हुक पे ठहरी चेतना रजनीश की,

योग की पेचीदगी का हल मिले या न मिले
आप सब सूरत से वाक़िफ़ हो गए इब्लीस की,

मोहतरम यूँ पाँव लटकाए हुए हैं क़ब्र में
चाहिए लड़की कोई सोलह, कोई उन्नीस की,

फ़ल्सफ़े की रौशनी में रूह नंगी हो गई
क्यूँ नहीं उठती है अब कोई नज़र तफ़्तीश की,

जिस्म की घाटी में अब इल्हाम ढूँढ़ा जा रहा
ये घिनौनी लत है कोरे गाँव के जगदीश की..!!

~अदम गोंडवी

जिसके सम्मोहन में पागल, धरती है, आकाश भी है

Leave a Reply