दोस्ती को आम करना चाहता है
ख़ुद को नीलाम करना चाहता है,
बेंच आया है घटा के हाथ सूरज
दोपहर को शाम करना चाहता है,
नौकरी पे बस नहीं जान पे तो होगा
अब वो कोई काम करना चाहता है,
उम्र भर ख़ुद से रहा नाराज़ लेकिन
दूसरों को राम करना चाहता है,
बेचता है सच भरे बाज़ार में वो
ज़हर पी कर नाम करना चाहता है,
मक़ता बे रंग कह कर महफ़िल में
वो हुज्जत इतमाम करना चाहता है..!!