संभाला होश है जबसे
मुक़द्दर सख्त तर निकला
बड़ा है वास्ता जिससे
वही ज़ेर ओ ज़बर निकला,
सबक़ देता रहा मुझको
सदा रौशन ख्याली का
उसे जब पास से देखा
तो ख़ुद भी तंग नज़र निकला,
समझ कर ज़िन्दगी जिससे
मुहब्बत कर रहे थे हम
उसे जब छू कर देखा तो
फ़क़त ख़ाली बशर निकला,
मुहब्बत का नशा उतरा
तो तब साबित हुआ मुझको
जिसे मंज़िल समझते थे
वो बे मक़सद सफ़र निकला..!!