दिल ग़म ए रोज़गार से निकला
किस घने ख़ारज़ार से निकला,
हम-सफ़र हो गए मह ओ अंजुम
मैं जो अपने हिसार से निकला,
शोर था लाठियों का सड़कों पर
साँप घर की दरार से निकला,
जिस को काँटा समझ रहे थे लोग
उस का रिश्ता बहार से निकला,
कर गया मुंतशिर निज़ाम ए जहाँ
जो भी ज़र्रा क़तार से निकला,
हो गया बहर ए बे कराँ वो सलीम
जो भी दरिया कनार से निकला..!!
~सलीम अंसारी
मुझ को सज़ा ए मौत का धोका दिया गया
























