दौर ए ज़दीद में गुनाह ओ सवाब बिकते है

दौर ए ज़दीद में गुनाह ओ सवाब बिकते है
वतन में अब जुबां, क़लम ज़नाब बिकते है,

पहले मुफ़लिस ओ मज़बूर बिका करते थे
आज कल हर सू इज्ज़त ए माअब बिकते है,

बे ज़मीर ओ बेईमानो की गन्दी सियासत में
अदल,मुंसिफ़ ए मुंसिफाँ के ख़िताब बिकते है,

शैख़ ओ वाइज़, वज़ीर, ख़तीब ओ क़ातिब
सहाफ़ी,शायर सब यहाँ पर ज़नाब बिकते है..!!

~नवाब ए हिन्द

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