जब दुश्मनों के चार सू लश्कर निकल पड़े…
जब दुश्मनों के चार सू लश्कर निकल पड़े हम भी कफ़न बाँध के सर पर …
जब दुश्मनों के चार सू लश्कर निकल पड़े हम भी कफ़न बाँध के सर पर …
आपसे किसने कहा स्वर्णिम शिखर बनकर दिखो शौक दिखने का है तो फिर नींव के …
घर जब बना लिया तेरे दर पर कहे बग़ैर जानेगा अब भी तू न मेरा …
क्या बताते हैं इशारात तुम्हें क्या मा’लूम कितने मश्कूक हैं हालात तुम्हें क्या मा’लूम ? …
ज़िन्दगी से एक दिन मौसम खफ़ा हो जाएँगे रंग ए गुल और बू ए गुल …
कोई नई चोट फिर से खाओ ! उदास लोगो कहा था किसने कि मुस्कुराओ ! …
जिनके घरो में आज भी चूल्हा नहीं जला खाना गर हम उनको खिलाएँ तो ईद …
आया ही नहीं कोई बोझ अपना उठाने को कब तक मैं छुपा रखता इस ख़्वाब …
सवाद ए शाम न रंग ए सहर को देखते हैं बस एक सितारा ए वहशत …
अब वो झोंके कहाँ सबा जैसे आग है शहर की हवा जैसे, शब सुलगती है …