Ahmad Faraz
अर्ज़ ए गम कभी उसके रूबरू भी हो जाए…
अर्ज़ ए गम कभी उसके रूबरू भी हो जाए शायरी तो होती है, कभी गुफ़्तगू …
ये मेरी ग़ज़लें ये मेरी नज़्में तमाम तेरी हिकायतें हैं…
ये मेरी ग़ज़लें ये मेरी नज़्में तमाम तेरी हिकायतें हैंये तज़किरे तेरी लुत्फ़ के हैं …
चलो ये इश्क़ नहीं चाहने की आदत है…
चलो ये इश्क़ नहीं चाहने की आदत हैकि क्या करें हमें दू्सरे की आदत है, …
उस ने सुकूत-ए-शब में भी अपना पयाम रख दिया..
उस ने सुकूत-ए-शब में भी अपना पयाम रख दियाहिज्र की रात बाम पर माह-ए-तमाम रख …
उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ…
उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआअब क्या कहें ये क़िस्सा पुराना बहुत हुआ, …