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Ahmad Faraz

न शब ओ रोज़ ही बदले है न हाल अच्छा है…

na shab o roz hi badle naa haal achcha hai

न शब ओ रोज़ ही बदले है न हाल अच्छा है किस ब्राह्मण ने कहा था कि ये …

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ग़ैरत ए इश्क़ सलामत थी अना ज़िंदा थी…

gairat e ishq slamat thi ana zinda thi

ग़ैरत ए इश्क़ सलामत थी अना ज़िंदा थी वो भी दिन थे कि रह ओ रस्म ए वफ़ा …

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रोग ऐसे भी गम ए यार से लग जाते है…

rog aise bhi gam e yaar se lag jate hai

रोग ऐसे भी गम ए यार से लग जाते है दर से उठते है तो दीवार से लग …

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अर्ज़ ए गम कभी उसके रूबरू भी हो जाए…

Bazmeshayari_512X512

अर्ज़ ए गम कभी उसके रूबरू भी हो जाए शायरी तो होती है, कभी गुफ़्तगू भी हो जाए, …

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ये मेरी ग़ज़लें ये मेरी नज़्में तमाम तेरी हिकायतें हैं…

Bazmeshayari_512X512

ये मेरी ग़ज़लें ये मेरी नज़्में तमाम तेरी हिकायतें हैंये तज़किरे तेरी लुत्फ़ के हैं ये शेर तेरी …

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चलो ये इश्क़ नहीं चाहने की आदत है…

Bazmeshayari_512X512

चलो ये इश्क़ नहीं चाहने की आदत हैकि क्या करें हमें दू्सरे की आदत है, तू अपनी शीशा-गरी …

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उस ने सुकूत-ए-शब में भी अपना पयाम रख दिया..

Bazmeshayari_512X512

उस ने सुकूत-ए-शब में भी अपना पयाम रख दियाहिज्र की रात बाम पर माह-ए-तमाम रख दिया, आमद-ए-दोस्त की …

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उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ…

Bazmeshayari_512X512

उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआअब क्या कहें ये क़िस्सा पुराना बहुत हुआ, ढलती न थी …

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असर उस को ज़रा

असर उस को ज़रा नहीं होता

वो जो हम में

वो जो हम में तुम में क़रार था…

रह वफ़ा में

रह वफ़ा में कोई साहिब ए जुनूँ न मिला

हाल में अपने मगन

हाल में अपने मगन हो फ़िक्र ए आइंदा न हो

कभी अपने इश्क़ पे

कभी अपने इश्क़ पे तब्सिरे कभी तज़्किरे रुख़ ए यार के

ऐ जुनूँ कुछ तो

ऐ जुनूँ कुछ तो खुले आख़िर मैं किस मंज़िल में हूँ

और कोई दम की

और कोई दम की मेहमाँ है गुज़र जाएगी रात

तो क्या ये तय

तो क्या ये तय है कि अब उम्र भर नहीं मिलना

बता ऐ अब्र मुसावात

बता ऐ अब्र मुसावात क्यूँ नहीं करता

बिछड़ कर उसका दिल

बिछड़ कर उसका दिल लग भी गया तो क्या लगेगा

पराई आग पे रोटी

पराई आग पे रोटी नहीं बनाऊँगा

देखो अभी लहू की

देखो अभी लहू की एक धार चल रही है

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असर उस को ज़रा

असर उस को ज़रा नहीं होता

वो जो हम में

वो जो हम में तुम में क़रार था…

रह वफ़ा में

रह वफ़ा में कोई साहिब ए जुनूँ न मिला