बीच सफ़र में छोड़ गया हमसफ़र…

बीच सफ़र में छोड़ गया हमसफ़र हमसफ़र ना रहा
इतना दर्द दिया हमदर्द ने कि हमदर्द हमदर्द ना रहा,

तेरे गाल के तिल ने लगवाई इतनी तोहमते
कलंक सा लगने लगा अब तिल तिल ना रहा,

दिल में दफ़न हुए मेरे दिल के सब अरमां
यादो का क़ब्र बन गया दिल, दिल दिल ना रहा..!

वो छोड़ गया इस दर ओ मकान को जब से
बस मकान ही लगता है ये घर अब घर ना रहा,

कुछ इस तरह से ज़ख्म दिया मेरे अपनों ने
अब तो मेरे इलाज़ का कोई दवा या मरहम ना रहा,

कुछ यूँ बंद कर दिए उस बेदर्दी ने सभी रास्ते
वस्ल की उम्मीद क्या ? देखने तक का भरम ना रहा..!!

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