अश्क ए नादाँ से कहो बाद में पछताएँगे
आप गिर कर मेरी आँखों से किधर जाएँगे ?
अपने लफ़्ज़ों को तकल्लुम से गिरा कर जानाँ
अपने लहजे की थकावट में बिखर जाएँगे,
तुम से ले जाएँगे हम छीन के वायदे अपने
अब तो कसमों की सदाक़त से भी डर जाएँगे,
एक तेरा घर था मेरी हद ए मुसाफत लेकिन
अब ये सोचा है कि हम हद से गुज़र जाएँगे,
अपने अफ्क़ार जला डालेंगे कागज़ कागज़
सोच मर जाएगी तो हम आप ही मर जाएँगे,
इस से पहले कि जुदाई की ख़बर तुम से मिले
हम ने सोचा है कि हम तुम से बिछड़ जाएँगे..!!
~खलीलउल रहमान क़मर
























