अफ़सोस तुम्हें कार के शीशे का हुआ है
परवाह नहीं एक माँ का जो दिल टूट गया है,
होता है असर तुम पे कहाँ नाला ए ग़म का
बरहम जो हुई बज़्म ए तरब इसका गिला है,
फ़िरऔन भी नमरूद भी गुज़रे हैं जहाँ में
रहता है यहाँ कौन यहाँ कौन रहा है,
तुम ज़ुल्म कहाँ तक तह ए अफ़्लाक करोगे
ये बात न भूलो कि हमारा भी ख़ुदा है,
आज़ादी ए इंसान के वहीं फूल खिलेंगे
जिस जा पे ज़हीर आज तेरा ख़ून गिरा है,
ता चंद रहेगी ये शब ए ग़म की सियाही
रस्ता कोई सूरज का कहीं रोक सका है,
तू आज का शाइ’र है तो कर मेरी तरह बात
जैसे मेरे होंठों पे मेरे दिल की सदा है..!!
~हबीब जालिब