अदा से देख लो जाता रहे गिला दिल का
बस एक निगाह पे ठहरा है फ़ैसला दिल का,
सितम वो तुम ने किए भूले हम गिला दिल का
हुआ तुम्हारे बिगड़ने से फ़ैसला दिल का,
बहार आते ही कुंज ए क़फ़स नसीब हुआ
हज़ार हैफ़ कि निकला न जो सिला दिल का,
जो ये निशाना उड़ा दो तो समझें तीर फ़गन
बहुत है नावक ए मिज़्गाँ से फ़ासला दिल का,
इलाही ख़ैर हो कुछ आज रंग बे ढब है
टपक रहा है कई दिन से आबला दिल का,
चला है छोड़ के तन्हा किधर तसव्वुर ए यार
शब ए फ़िराक़ में था तुझ से मश्ग़ला दिल का,
वो रिंद हूँ कि मुझे हथकड़ी से बै’अत है
बला है गेसू ए जानाँ से सिलसिला दिल का,
फिरा जो कूचा ए काकुल से कोई पूछेंगे
सुना है लुट गया रस्ते में क़ाफ़िला दिल का,
उमीद ए सुब्ह में करता हूँ चाक दामन ए शब
जुनूँ में रोज़ निकाला है मश्ग़ला दिल का,
वो ज़ुल्म करते हैं हम पर तो लोग कहते हैं
ख़ुदा बुरे से न डाले मु’आमला दिल का,
हज़ार फ़स्ल ए गुल आए जुनूँ वो जोश कहाँ
गया शबाब के हमराह वलवला दिल का,
ख़ुदा के हाथ है अपना अब ऐ ‘क़लक़’ इंसाफ़
बुतों से हश्र में होगा मुक़ाबला दिल का..!!
~असद अली ख़ान क़लक़
बात साक़ी की न टाली जाएगी
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