आप की आँख से गहरा है मेरी रूह का ज़ख़्म

आप की आँख से गहरा है मेरी रूह का ज़ख़्म
आप क्या सोच सकेंगे मेरी तन्हाई को ?

मैं तो दम तोड़ रहा था मगर अफ़्सुर्दा हयात
ख़ुद चली आई मेरी हौसला अफ़ज़ाई को,

लज़्ज़त ए ग़म के सिवा तेरी निगाहों के बग़ैर
कौन समझा है मेरे ज़ख़्म की गहराई को,

मैं बढ़ाऊँगा तेरी शोहरत ए ख़ुश्बू का निखार
तू दुआ दे मेरे अफ़्साना ए रुसवाई को,

वो तो यूँ कहिए कि एक क़ौस ए क़ुज़ह फैल गई
वर्ना मैं भूल गया था तेरी अंगड़ाई को..!!

~मोहसिन नक़वी

तेरे बदन से जो छू कर इधर भी आता है

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