आँसूं भी जो मिल जाएँ तो मुस्काती हैं
बेटियाँ तो बड़ी मासूम हैं जज़्बाती हैं,
ख़िदमत से उतर जाती हैं दिल में सब के
हर नई नस्ल को तहज़ीब सीखलाती हैं,
इनसे क़ायम है तक़द्दुस हमारे घर का
सुबह को अपनी नमाज़ों से ये महकाती है,
लोग बेटों से ही रखते है तवक्को लेकिन
बेटियाँ अपनी बुरे वक़्त में काम आती हैं,
बेटियाँ होती हैं पुरनूर चिरागों की तरह
रौशनी करती हैं जिस घर में चली जाती हैं,
अपनी ससुराल का हर ज़ख्म छुपा लेती हैं
सामने माँ के जब आती हैं तो मुस्काती हैं..!!
























