आदम की जात होकर इल्म बिसरा रहे हो
क्यूँ मज़लूम ओ गरीब को बेवजह सता रहे हो ?
छोड़ आई अपने माँ बाप का घर तुम्हारे लिए
और तुम ही उसे इस कदर रुला रहे हो,
ईंट पत्थर के मकाँ को घर भी वही बनाएगी
जिसकी ख्वाहिशों को तुम दफना रहे हो,
जानते हो क़ैद मे है एक परिंदा और
तुम क़फ़स के दायरे घटाते जा रहे हो,
यूँ तो मुल्क मे सब ही अमन के मुरीद हैं
फिर हर बात पे क्यूँ हिन्दू मुस्लिम गा रहे हो..!!