दुनियाँ की बुलंदी के तलबगार नहीं हैं

दुनियाँ की बुलंदी के तलबगार नहीं हैं
हम अहल ए ख़िरद तेरे परस्तार नहीं हैं,

बरगद की तरह क़दम अपने जमाए है
हर आन जो गिर जाए वो दीवार नहीं हैं,

हैं दफ़न कई नस्लें इसी खाक़ में यारों
हम अहल ए वतन हैं कोई ग़द्दार नहीं हैं,

जो दुश्मनों को भी यहाँ सीने से लगाएँ
हम जैसे कोई साहब ए किरदार नहीं हैं,

चेहरों की ये ज़र्दी है फ़क़त खौफ़ ए खुदा की
आलिम ये वली अल्लाह हैं बीमार नहीं हैं..!!

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