याद ए माज़ी में जो आँखों को सज़ा दी जाए

याद ए माज़ी में जो आँखों को सज़ा दी जाए
उस से बेहतर है कि हर बात भूला दी जाए,

जिस से थोड़ी सी भी उम्मीद ज़्यादा हो कभी
ऐसी हर शमअ सर ए शाम बुझा दी जाए,

मैंने अपनों के रवैये से ये महसूस किया
दिल के आँगन में भी दीवार उठा दी जाए,

मैंने यारों के बिछड़ने से ये सीखा है सबक़
अपने दुश्मन को भी जीने की दुआ दी जाए..!!

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