ये किन ख़यालों में खो रहे हो नई है…

ये किन ख़यालों में खो रहे हो नई है बुनियाद ए आशियाना
चमन की तामीर इस तरह हो कि रश्क तुम पर करे ज़माना,

ये जान लो किस मक़ाम पर हो चुना है किस रहगुज़र को तुमने
उठो कि तहज़ीब ए नौ ने बढ़ कर बदल दिया दहर का फ़साना,

तुम्हारे अज़्म ओ अमल में पिन्हाँ फ़रोग़ ए आलम की क़ुव्वतें हैं
बदल दो तदबीर से मुक़द्दर हनूज़ हालात का निशाना,

जो दिल में मंज़िल की आरज़ू है तो सीख लो तुम ऐ नौजवानो
हर एक आफ़त का रुख़ बदलना हर एक मुसीबत पर मुस्कुराना,

तुम्हें ख़बर है कि अहद ए माज़ी में दौर ऐसे भी आ चुके हैं
पड़े रहे तुम ही ग़फ़लतों में पुकारता रह गया ज़माना,

नया ज़माना नई है महफ़िल नए हैं बरबत नई तरंगें
पुराने रागों को बंद कर दो फ़ज़ा को दे दो नया तराना,

न अह्ल ए दुनिया की सम्त देखो जुदा जुदा है मफ़ाद सब का
अगरचे कोशिश करोगे दिल से बनेगा फ़िरदौस आशियाना,

मज़ा तो जब है ऐ नौजवानो कहे तुम्हें आफ़रीं मूअर्रिख़
अभी तो है वक़्त सब्त कर दो तुम अपना तारीख़ में फ़साना..!!

~जमाल भारती

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