तबीब हो के भी दिल की दवा नहीं करते
हम अपने ज़ख़्मों से कोई दग़ा नहीं करते,
परिंदे उड़ने लगे हैं ग़ुरूर के तेरे
हवा में काग़ज़ी पर से उड़ा नहीं करते,
नकेल डालनी है नफ़्स के इरादों पर
बिना लगाम के घोड़े थमा नहीं करते,
दुआ को हाथ उठाते नहीं हर इक के लिए
तो ये भी सच है कि हम बद्दुआ नहीं करते,
ये सुर्ख़ आँधियाँ क्या ‘चाँद’ का बिगाड़ेंगी
बुलंद पेड़ हवा से गिरा नहीं करते..!!
~चाँद अकबराबादी