दिल चाहे कि आज कुछ सुनहरा लिखूँ

दिल चाहे कि आज कुछ सुनहरा लिखूँ
मैं ज़ात पे मेरी एक पैरा लिखूँ,

मैं लिखूँ हयात सारी एक ही गज़ल में
समन्दर लिखूँ और फिर सेहरा लिखूँ,

तवील मुद्दत तक कोई पढ़ता रहे मुझे
मैं हकीक़त लिखूँ और फिर ठहर जा लिखूँ,

ख्याल ओ हालात क्या है अपने आजकल
मैं क़ल्ब लिखूँ और फिर चेहरा लिखूँ,

समझ आ ना सकूं किसी ना फ़हम को इसलिए
मैं शऊर लिखूँ और फिर गहरा लिखूँ,

अदावतें तो है हसदकारो को हमसे बहुत
मैं हाल आप लिखूँ और फिर पहरा लिखूँ..!!

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