कभी ख़िरद से कभी दिल से दोस्ती कर ली

कभी ख़िरद से कभी दिल से दोस्ती कर ली
न पूछ कैसे बसर हम ने ज़िंदगी कर ली,

अँधेरी रात का मंज़र भी ख़ूब था लेकिन
तुम आ गए तो चराग़ों में रौशनी कर ली,

तुम्हारा जिस्म है जाड़ों का सर्द सन्नाटा
हरारतों से कहाँ तुम ने दोस्ती कर ली,

हुज़ूर ए दोस्त अजब हादिसा हुआ यारो
हर एक हर्फ़ ए शिकायत ने ख़ुदकुशी कर ली,

लिए फिरे हैं बहुत तुम को दिल की गलियों में
इस एक बात पे दुनिया ने दुश्मनी कर ली,

हर एक मोड़ पे ख़ंजर ब कफ़ थी तन्हाई
ग़रीब ए शहर ने घबरा के ख़ुदकुशी कर ली..!!

~ज़ुबैर रिज़वी

मुझे तुम शोहरतों के दरमियाँ गुमनाम लिख देना

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