ये तो नहीं कि तुम से मोहब्बत नहीं मुझे

ये तो नहीं कि तुम से मोहब्बत नहीं मुझे
इतना ज़रूर है कि शिकायत नहीं मुझे,

मैं हूँ कि इश्तियाक़ में सर ता क़दम नज़र
वो हैं कि एक नज़र की इजाज़त नहीं मुझे,

आज़ादी ए गुनाह की हसरत के साथ साथ
आज़ादी ए ख़याल की जुरअत नहीं मुझे,

दूभर है गरचे जौर‌‌‌‌ ए अज़ीज़ाँ से ज़िंदगी
लेकिन ख़ुदा गवाह शिकायत नहीं मुझे,

जिस का गुरेज़ शर्त हो तक़रीब ए दीद में
इस होश इस नज़र की ज़रूरत नहीं मुझे,

जो कुछ गुज़र रही है ग़नीमत है हमनशीं
अब ज़िंदगी पे ग़ौर की फ़ुर्सत नहीं मुझे,

मैं क्यूँ किसी के अहद ए वफ़ा का यक़ीं करूँ
इतनी शदीद ग़म की ज़रूरत नहीं मुझे,

सज्दे मेरे ख़याल ए जज़ा से हैं मावरा
मक़्सूद बंदगी से तिजारत नहीं मुझे,

मैं और दे सकूँ न तेरे ग़म को ज़िंदगी
ऐसी तो ज़िंदगी से मोहब्बत नहीं मुझे,

एहसान कौन मुझ से सिवा है मेरा अदू
अपने सिवा किसी से शिकायत नहीं मुझे..!!

~एहसान दानिश

मेरी अना का असासा ज़रूर ख़ाक हुआ

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