गर्दिश ए साग़र सुबू के दरमियाँ

गर्दिश ए साग़र सुबू के दरमियाँ
ज़िंदगी है हाओ हू के दरमियाँ,

ज़ख़्म और पोशाक भी रखे गए
आइना और आब जू के दरमियाँ,

तीसरा रस्ता किधर को जाए है
आरज़ू और जुस्तुजू के दरमियाँ,

कितनी बे मा’नी सी है ये ज़िंदगी
ख़ामोशी और गुफ़्तुगू के दरमियाँ,

ज़िंदगी तरजीह किस को देती है
सब्ज़ रू और ख़ुश गुलू के दरमियाँ,

याद की एक अजनबी परछाईं है
रंग ओ बू ओ काख़ ओ कू के दरमियाँ,

वक़्त से बच कर निकल जाऊँ कहीं
एक दर है चार सू के दरमियाँ,

मेरा चेहरा दूसरों से मुख़्तलिफ़
फ़र्क़ है क्या ये लहू के दरमियाँ..!!

~नून मीम दनिश

ये क्या रुत है अब की रुत में देखें ज़र्द गुलाब

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