फिर गोया हुई शाम परिंदों की ज़बानी

फिर गोया हुई शाम परिंदों की ज़बानी
आओ सुनें मिट्टी से ही मिट्टी की कहानी,

वाक़िफ़ नहीं अब कोई समुंदर की ज़बाँ से
सदियों की मसाफ़त को सुनाता तो है पानी,

उतरे कोई महताब कि कश्ती हो तह ए आब
दरिया में बदलती नहीं दरिया की रवानी,

कहता है कोई कुछ तो समझता है कोई कुछ
लफ़्ज़ों से जुदा हो गए लफ़्ज़ों के मआ’नी,

इस बार तो दोनों थे नई राहों के राही
कुछ दूर ही हमराह चलें यादें पुरानी,

~निदा फ़ाज़ली

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