बदले बदले मेरे ग़म ख़्वार नज़र आते हैं
मरहले इश्क़ के दुश्वार नज़र आते हैं,
कश्ती ए ग़ैरत ए एहसास सलामत यारब
आज तूफ़ान के आसार नज़र आते हैं,
इंक़लाब आया न जाने ये चमन में कैसा
ग़ुंचा ओ गुल मुझे तलवार नज़र आते हैं,
जिन की आँखों से छलकता था कभी रंग ए ख़ुलूस
इन दिनों माइल ए तकरार नज़र आते हैं,
जो सुना करते थे हंस हंस के कभी नामा ए शौक़
अब मेरी शक्ल से बेज़ार नज़र आते हैं,
उन के आगे जो झुकी रहती हैं नज़रें अपनी
इस लिए हम ही ख़तावार नज़र आते हैं,
दुश्मन ए ख़ू ए वफ़ा रस्म ए मोहब्बत के हरीफ़
वही क्या और भी दो चार नज़र आते हैं,
जिंस ए नायाब ए मोहब्बत की ख़ुदा ख़ैर करे
बुल हवस उस के ख़रीदार नज़र आते हैं,
वक़्त के पूजने वाले हैं पुजारी उन के
कोई मतलब हो तो ग़मख़्वार नज़र आते हैं,
जाएज़ा दिल का अगर लो तो वफ़ा से ख़ाली
शक्ल देखो तो नमक ख़्वार नज़र आते हैं,
रोज़ ए रौशन में अगर उन को दिखाओ तारे
वो ये कह देंगे कि सरकार नज़र आते हैं,
हम न बदले थे न बदले हैं न बदलेंगे शकील
एक ही रंग में हर बार नज़र आते हैं..!!
~शकील बदायूनी