एक ख़ला अंदर उतर जाने दिया
ख़ुद को ख़ालीपन से भर जाने दिया,
जान मुड़ कर देखती थी बार बार
जिस्म ने उस को मगर जाने दिया,
कर ही क्या सकते थे हम सो उम्र भर
रफ़्ता रफ़्ता ख़ुद को मर जाने दिया,
सर छुपाया अपना अपने आप में
और तूफ़ाँ को गुज़र जाने दिया,
हम न रख पाए ज़बाँ अपनी ख़मोश
सर तो जाना ही था सर जाने दिया..!!
~राजेश रेड्डी
























