कह गया हूँ जो मैं रवानी में

कह गया हूँ जो मैं रवानी में
वो तो शामिल न था कहानी में,

कोई लग़्ज़िश गुनाह तौबा कर
नेक बच्चा था मैं जवानी में,

रंग काला भी उस पे जचता है
पर जो लगती है आसमानी में,

पाँव दरिया में डाल कर बोली
ऐसे लगती है आग पानी में,

मैं अगर ख़ुद को मार डालूँ तो
क्या बचेगा तेरी कहानी में..??

~ख़ालिद नदीम शानी

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